आदि शक्ति माता आराधना के ५१ शक्ति पीठ

आदि शक्ति माता आराधना के ५१ शक्ति पीठ

माता की आराधना के ५२ शक्ति पीठ,
दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी

आमतौर पर ५१ शक्ति पीठ माने जाते हैं।
तन्त्र चूड़ामणि में लगभग
५२ शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है ।

देवी भागवत पुराण में 108,

कालिका पुराण में छब्बीस,

शिवचरित्र में इक्यावन,

दुर्गा शप्त सती और
तन्त्रचूड़ामणि में
शक्ति पीठों की संख्या
५२ बताई गई है।

आमतौर पर 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं।

तन्त्र चूड़ामणि में लगभग
५२ शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है।

कुल ५२ शक्ति पीठ
०१-
हिङ्गलाज
कराची से 125 किमी दूर है।
यहाॅ माता का ब्रह्मरन्ध (सिर) गिरा था।
इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व
भैरव को भीम लोचन कहते हैं।
०२-
शर्कररे
पाक के कराची के पास यह शक्तिपीठ स्थित है।
यहाँ माता की ऑख गिरी थी।
इसकी शक्ति- महिषासुर मर्दिनी व
भैरव को क्रोधिश कहते हैं।
०३-
सुगन्धा
बाङ्गलादेश के शिकारपुर के पास
दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है।
माता की नासिका गिरी थी यहाँ।
इसकी शक्ति सुनन्दा है व
भैरव को त्र्यम्बक कहते हैं।
०४-
महामाया
भारत के कश्मीर में पहलगाॅव के निकट
माता का कण्ठ गिरा था।
इसकी शक्ति है महामाया और
भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।
०५-
ज्वालाजी
हिमाचल प्रदेश के काङ्गड़ा में
माता की जीभ गिरी थी।
इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं।
इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अम्बिका) व
भैरव को उन्मत्त कहते हैं।
०६-
त्रिपुरमालिनी
पञ्जाब के जालन्धर में देवी तालाब,
जहाॅ माता का बायाॅ वक्ष (स्तन) गिरा था।
इसकी शक्ति है त्रिपुर मालिनी व
भैरव को भीषण कहते हैं।
०७-
वैद्यनाथ
झारखण्ड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम
जहाॅ माता का हृदय गिरा था।
इसकी शक्ति है जय दुर्गा और
भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।
०८-
महामाया
नेपाल में गुजरेश्वरी मन्दिर,
जहाँ माता के दोनों घुटने ( जानु ) गिरे थे।
इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और
भैरव को कपाली कहते हैं।
०९-
दाक्षायणी
तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास
पाषाण शिला पर माता का दायाॅ हाथ गिरा था।
इसकी शक्ति है दाक्षायणी और
भैरव अमर।
१०-
विरजा
ओडिशा के विराज में उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है।
यहाॅ माता की नाभि गिरी थी।
इसकी शक्ति विमला है व
भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।
११-
गण्डकी
नेपाल में मुक्ति नाथ मन्दिर,
जहाँ माता का मस्तक या गण्डस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी।
इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी व
भैरव चक्रपाणि हैं।
१२-
बहुला
पश्चिम बङ्गाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर
माता का बायाॅ हाथ गिरा था।
इसकी शक्ति है देवी बाहुला व
भैरव को भीरुक कहते हैं।
१३-
उज्जयिनी
पश्चिम बङ्गाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर
माता की दाईं कलाई गिरी थी।
इसकी शक्ति है मङ्गल चन्द्रिका और
भैरव को कपिलाम्बर कहते हैं।
१४-
त्रिपुर सुन्दरी
त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गाँव के
माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर
माता का दायाॅ पैर गिरा था।
इसकी शक्ति है त्रिपुर सुन्दरी व
भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
१५-
भवानी
बाङ्गलादेश चन्द्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) में
माता की दाईं भुजा गिरी थी।
भवानी इसकी शक्ति हैं व
भैरव को चन्द्रशेखर कहते हैं।
१६-
भ्रामरी
पश्चिम बङ्गाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत स्थान पर
माता का बायाॅ पैर गिरा था।
इसकी शक्ति है भ्रामरी और
भैरव को अम्बर और भैरवेश्वर कहते हैं।
१७-
कामाख्या
असम के कामगिरि में स्थित नीलाञ्चल पर्वत के कामाख्या स्थान पर
माता का योनि भाग गिरा था।
कामाख्या इसकी शक्ति हैं व
भैरव को उमानन्द कहते हैं।
१८-
प्रयाग
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद (प्रयाग) के
सङ्गम तट पर
माता के हाॅथ की अङ्गुली गिरी थी।
इसकी शक्ति है ललिता और
भैरव को भव कहते हैं।
१९-
जयन्ती
बाङ्गलादेश के खासी पर्वत पर जयन्ती मन्दिर,
जहाँ माता की बाईं जङ्घा गिरी थी।
इसकी शक्ति है जयन्ती और
भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।
२०-
युगाद्या
पश्चिम बङ्गाल के युगाद्या स्थान पर
माता के दाएं पैर का अँगूठा गिरा था।
इसकी शक्ति है भूतधात्री और
भैरव को क्षीर खण्डक कहते हैं।
२१-
कालीपीठ
कोलकाता के कालीघाट में
माता के बाएं पैर का अँगूठा गिरा था।
इसकी शक्ति है कालिका और
भैरव को नकुशील कहते हैं।
२२-
किरीट
पश्चिम बङ्गाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास
माता का मुकुट गिरा था।
इसकी शक्ति है विमला व
भैरव को संवत्र्त कहते हैं।
२३-
विशालाक्षी
यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट पर
माता के कान के मणिजडि़त कुण्डल गिरे थे।
शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व
भैरव को काल भैरव कहते हैं।
२४-
कन्याश्रम
कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था।
इसकी शक्ति है सर्वाणी और
भैरव को निमिष कहते हैं।
२५-
सावित्री
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में
माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी।
इसकी शक्ति है सावित्री और
भैरव को स्थाणु कहते हैं।
२६-
गायत्री
अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर
दो मणिबन्ध गिरे थे।
इसकी शक्ति है गायत्री और
भैरव को सर्वानन्द कहते हैं।
२७-
श्रीशैल
बाङ्गलादेश के शैल नामक स्थान पर
माता का गला (ग्रीवा) गिरा था।
इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और
भैरव को शम्बरानन्द कहते हैं।
२८-
देवगर्भा
पश्चिम बङ्गाल के कोपई नदी तट पर
काॅची नामक स्थान पर
माता की अस्थि गिरी थी।
इसकी शक्ति है देवगर्भा और
भैरव को रुरु कहते हैं।
२९-
कालमाधव
मध्यप्रदेश के शोन नदी तट के पास
माता का बायाॅ नितम्ब गिरा था ।
जहाॅ एक गुफा है।
इसकी शक्ति है काली और
भैरव को असिताङ्ग कहते हैं।
३०-
शोणदेश
मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान पर माता का
दायाॅ नितम्ब गिरा था।
इसकी शक्ति है नर्मदा और
भैरव को भद्रसेन कहते हैं।
३१-
शिवानी
यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाॅ वक्ष गिरा था।
इसकी शक्ति है शिवानी और
भैरव को चण्ड कहते हैं।
३२-
वृन्दावन
मथुरा के निकट वृन्दावन के भूतेश्वर स्थान पर
माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।
इसकी शक्ति है उमा और
भैरव को भूतेश कहते हैं।
३३-
नारायणी
कन्याकुमारी-तिरुवनन्तपुरम मार्ग पर
शुचितीर्थम शिव मन्दिर है,
जहाॅ पर माता के दन्त ( ऊर्ध्वदन्त ) गिरे थे।
शक्तिनारायणी और
भैरव संहार हैं।
३४-
वाराही
पञ्चसागर (अज्ञात स्थान ) में
माता की निचले दन्त ( अधोदन्त ) गिरे थे।
इसकी शक्ति है वराही और
भैरव को महारुद्र कहते हैं।
३५-
अपर्णा
बाङ्गलादेश के भवानीपुर गाँव के पास
करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी।
इसकी शक्ति अर्पणा और
भैरव को वामन कहते हैं।
३६-
श्रीसुन्दरी
लद्दाख के पर्वत पर
माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी।
इसकी शक्ति है श्री सुन्दरी और
भैरव को सुन्दरानन्द कहते हैं।
३७-
कपालिनी
पश्चिम बङ्गाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास
तामलुक स्थित विभाष स्थान पर
माता की बायीं एड़ी गिरी थी।
इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और
भैरव को शर्वानन्द कहते हैं।
३८-
चन्द्रभागा
गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में
माता का उदर गिरा था।
इसकी शक्ति है चन्द्रभागा और
भैरव को वक्रतुण्ड कहते हैं।
३९-
अवन्ती
उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास
भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे।
इसकी शक्ति है अवन्ति और
भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।
४०-
भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर
माता की ठोड़ी गिरी थी।
शक्ति है भ्रामरी और
भैरव है विकृताक्ष।
४१-
सर्वशैल स्थान
आन्ध्रप्रदेश के कोटिलिङ्गेश्वर मन्दिर के पास
माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे।
इसकी शक्ति है राकिनी और
भैरव को वत्सनाभम कहते हैंं।
४२-
गोदावरी तीर
यहाँ माता के दक्षिण गण्ड गिरे थे।
इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और
भैरव को दण्डपाणि कहते हैं।
४३-
कुमारी
बङ्गाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर
माता का दायाँ स्कन्ध गिरा था।
इसकी शक्ति है कुमारी और
भैरव को शिव कहते हैं।
४४-
उमा महादेवी
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट
मिथिला में माता का बायाॅ स्कन्ध गिरा था।
इसकी शक्ति है उमा और
भैरव को महोदर कहते हैं।
४५-
कालिका
पश्चिम बङ्गाल के वीरभूमि जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट
नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी।
इसकी शक्ति है कालिका देवी और
भैरव को योगेश कहते हैं।
४६-
जयदुर्गा
कर्नाट ( अज्ञात स्थान ) में माता के दोनों कान गिरे थे।
इसकी शक्ति है जयदुर्गा और
भैरव को अभिरु कहते हैं।
४७-
महिषामर्दिनी
पश्चिम बङ्गाल के वीरभूमि जिले में पापहर नदी के तट पर
माता का भ्रूमध्य ( मन: ) गिरा था।
शक्ति है महिषामर्दिनी व
भैरव वक्रनाथ हैं।
४८-
यशोरेश्वरी
बाङ्गलादेश के खुलना जिला में माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे।
इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और
भैरव को चण्ड कहते हैं।
४९-
फुल्लरा
पश्चिम बङ्गाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर
माता के ओष्ठ गिरे थे।
इसकी शक्ति है फुल्लरा और
भैरव को विश्वेश कहते हैं।
५०-
नन्दिनी
पश्चिम बङ्गाल के वीरभूमि जिले के नन्दीपुर स्थित
बरगद के वृक्ष के समीप
माता का गले का हार गिरा था।
शक्ति नन्दिनी व भैरव नन्दीकेश्वर हैं।
५१-
इन्द्राक्षी
श्रीलङ्का में सम्भवत: त्रिङ्कोमाली में माता की पायल गिरी थी।
इसकी शक्ति है इन्द्राक्षी और
भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।
५२-
अम्बिका
विराट (अज्ञात स्थान ) में पैर की अँगुली गिरी थी।
इसकी शक्ति है अम्बिका और
भैरव को अमृत कहते हैं।

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