#पितृ दिवस #पर पिताजी को समर्पित मेरी कविता🌹🙏
…………………………….
पिता!
उस बूढ़े बरगद के समान होता है।
जो हर हाल में अपनी जड़ को,
जमीन में जमाए अपनी
संतान को पितृत्व की छाया में
पल्लवित और पुष्पित करता है।
और नित नवीन संस्कारों से
आगे बढ़ने की राह दिखाता है।
ठीक उसी तरह जैसे
एक बूढ़ा वट वृक्ष भी
जाने-अनजाने, भूले-भटके
पथिक को अपने छांव तले
आश्रय देता है और अपनी
शीतलता रूपी छाया से,
उसके दुःख को हर लेता है।
ठीक उसी तरह पिता भी तो
अपने सुख-दुःख की परवाह
किए बिना पर
अपने संतति के प्रगति को ही,
अपनी रीति, नीति और प्रीति
मानकर दिन-रात उसी में,
अपने आप को खपा देता है।
तब जाकर वह अपनी संतान को
अपने आदर्शों एवं संस्कारों से,
परिमार्जित कर उसे एक
नयी पहचान दे पाता है।
@नागेंद्र कुमार दूबे 20/06/2021
Heat touching poem🙏🏻