एक गलत कदम

किंजल! सुन, मैं सुबह 4 बजे ही स्टेशन पर आ जाऊँगा । तू भी तैयार होकर आ जाना और इंतज़ार मत करवाना वरना ट्रेन निकल जायेगी।

“अरे ! तू चिंता मत कर मैं सोऊंगी ही नहीं और वैसे भी आज रात नींद आने वाली भी नहीं है।”

“हाँ ! ये तो तू सही कह रही है नींद तो मुझे भी नहीं आने वाली।”

“एक बात बता, तू सच में मुझ से प्यार करता है न ?”

“अरे ! कैसी बातें करती है बिना प्यार के ही तुझे भगा के ले जाने का प्लान बना लिया।”

” हाँ ये तो है पर मम्मी पापा मान जाते तो कितना अच्छा होता न? ”

“कैसे मान जाते वो। उन्हें तो लगता है कि हम दसवीं में हैं तो ज़िन्दगी के फैसले ले ही नहीं सकते।”

“पर हम रहेंगे कहाँ और जायेंगे कहाँ ?”

“उसकी बाद में देखी जायेगी । बस तू जितने हो सके पैसे ले आना घर से और मैं भी जितना हो सकेगा ले आऊँगा ताकि कुछ दिन तो काम चल ही जायेगा उसके बाद सोचेंगे।”

“पर….”

“श्श्शश…. अब कोई पर-वर नहीं। भरोसा है न मुझ पर ?”

“हाँ भरोसा तो है ही ,तभी तो साथ निभा रही हूँ।”

“हाँ तो बस , जैसे मैंने कहा वैसा ही करना और ठीक 4 बजे बड़ी स्टेशन आ जाना।”

“ओके पागल। लव यू ढेर सारा।
“लव यू टू ढेर सारा।”

चार बजे सुबह स्टेशन पर …….

“अरे ! तू तो टाइम पे आ गयी । ”

“जी नहीं, मैं साढ़े तीन पर ही आ गयी थी और तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे ? कबसे फ़ोन किये पड़ी हूँ ।”

“वो फोन तो साइलेंट पर कर रखा था न ताकि मम्मी पापा की नींद न खुल जाये।”

“ठीक है । अब चलें ? ट्रेन का पता कर लिया था न ?”

“हाँ कर लिया था और तुम वो पैसे लाई हो ?”

“हाँ मैंने मम्मी की अलमारी से सारे निकाल लिये। बैग में ही रखे हैं।”

“ठीक है। लाओ ये बैग मुझे दे दो यहाँ चोर बहुत आते हैं ,कोई छीन लेगा तुमसे।”

“ठीक है ये लो।अब बताओ किस प्लेटफार्म पर चलना है हमें ? ”

“अरे ! पहले टिकट तो ले लूँ । तुम यहीं रुको मैं अभी टिकट ले कर आता हूँ।”

तकरीबन डेढ़ घण्टे हो गये थे । पर स्टेशन के गेट पर टिकी किंचल की निगाहें , उन कदमों को देखने के लिये तरसती रह गईं जिन कदमों से ज़िन्दगी भर साथ चलने की आस बटोर रखी थी उसने । वो अब समझ चुकी थी कि उसका प्यार धोखे की दीवार पर टंग चुका था।

अब उसके सामने धोखे से बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी कि अब वो कहाँ जाये। एक तरफ़ वो परिवार था जिसे वो धोखा दे कर आई थी जिसके सामने खड़े होने की हिम्मत तक नहीं थी उसमें और दूसरी तरफ़ स्टेशन की वो पटरी जिस पर मौत की ट्रेन उसका इंतज़ार कर रही थी।

तभी उसे अपने बचपन का एक वाकिया याद आया कि जब एक बार वो अपनी मम्मी के सोने के कंगन पहन कर स्कूल गयी थी और उन्हें स्कूल के मैदान में खेलते हुए गुम कर दिये थे । फिर जब रोते रोते वो घर आई और अपनी मम्मी को बताया तो उसकी मम्मी ने बस एक ही बात बोली थी उससे कि “तू तो ठीक है न ?”

इसीलिए उसने अपने कदम वापस लिये और लौट गई, उसी जगह जहाँ लौटकर, ज्यादा से ज़्यादा गलतियों की सज़ा मिलती है , वो भी बस उन्हें सुधारने के लिये।

जो रास्ता गलत राहों पर ले जाता है।
वही रास्ता घर वापस भी तो आता है॥

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