*मूल लक्ष्य*
एक लड़की जो बड़े घर की थी, उसके घर मे बहुत सारे नौकर थे। उस लड़की को कभी जरूरत नहीं पड़ी कि कभी रसोईघर में जाये या कभी बाजार में जाये। फिर उसकी शादी हुई वो ससुराल पहुँची। वह साथ में किताब लाई थी जो उसकी ही मौसी ने दी थी। उस किताब का नाम था– खाना-खजाना।
वो नवविवाहित स्त्री का रसोईघर में पहला दिन था उसके पति के कुछ मित्र आए थे और मजाक में ही बोले, ”यार ! नई-नई भाभी आई है उसके हाथ का बनाया हुआ कुछ नया-नया स्वादिष्ट खाना मिल जाये तो मजा आ जाए।
पति ने जाकर अपनी पत्नी से कहा, “मेरे कुछ मित्र आये हैं। कुछ मीठा बनाओ ताकि सभी खुश हो जायें।”
पत्नी गई रसोईघर में तो साथ मे खाना-खजाना की किताब लेते गई और फिर पहला पेज उल्टा तो लिखा था,
“हलवा बनाने की विधि”– गैस पर कड़ाही चढ़ाइए, घी दीजिए, सूजी दीजिए,चीनी दीजिए..।
नवविवाहिता उसी तरह करते जा रही थी जिस तरह किताब में लिखा था और फिर प्लेट में निकाल कर सभी को खाने को दिया। पति ओर उसके दोस्तों ने देखा तो हैरान हुआ और जाकर अपने पत्नी से पूछा, “कैसे बनाई, थोड़ा बताओ तो।”
पत्नी ने सब कुछ बता दिया।
पति ने कहा,”भाग्यवान ! तुमने सब कुछ ठीक किया लेकिन गैस जलाई थी?
पत्नी ने कहा , ”भूल गई। पर ये तो किताब में लिखा ही नहीं था।
यही हम अपने जीवन में करते हैं। सारे शास्त्र-ग्रन्थ पढ़ते हैं, रटते हैं और शास्त्रों का बहुत कुछ स्वयं भी पालन करते हैं। और दूसरों को भी करने को कहते हैं। लेकिन जिस तरह गैस जलाना वो महिला भूल गई कही उसी तरह हमने अपने मानव जीवन से सम्बंधित धार्मिक-ग्रन्थों के रहस्य को जानना भूल गये।
हम बाहरी पूजा-पाठ करते हैं। पर हमने उस ईश्वर का क्या किया जो हमारे अंदर है और विकारों के कारण जिसे महसूस नहीं कर पाते हैं।
अगर सब पढ़ा और जिससे मानव जीवन का कल्याण हो, जिसके लिए ईश्वर ने मानव तन दिया, वो न पढ़ा और न आचरण किया तो सब व्यर्थ है।
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