मैं एक प्रायवेट कम्पनी में कार्यरत हूँ। हमेशा की तरह कम्पनी में काम कर रहा था। एक दिन मुझे हल्का बुखार आया। शाम तक सर्दी भी हो गई। पास ही के मेडिकल स्टोर से दवाइयां मंगा कर खाई। 3-4 दिन थोड़ा ठीक रहा फ़िर एक दिन अचानक साँस लेने में दिक्कत हुई, ऑक्सीजन लेवल कम होने लगा था।
मेरी पत्नी तत्काल रिक्शा करके मुझे अस्पताल लेकर पहुंची। दो-तीन अस्पतालों के चक्कर काटे।। सरकारी अस्पतालों में पलंग फुल चल रहे थे। मैं देख रहा था कि मेरी पत्नी मेरे इलाज के लिये डाक्टर के सामने गिड़गिड़ा रही थी। मैं अपने परिवार को असहाय सा बस देख ही पा रहा था मेरी तकलीफ़ धीरे-धीरे बढती ही जा रही थी, मेरी पत्नी मुझे हौसला दिला रही थी। कह रही थी, कुछ नही होगा हिम्मत रखो (यहाँ बता दूँ कि यह वही औरत थी जिसे मे हमेशा कहता था की तुम बेवकूफ़ औरत हो तुम्हें क्या पता कि दुनिया में क्या चल रहा है।)
उसने आख़िर एक प्राइवेट अस्पताल में हाथाजोड़ी कर-करके और लड़-झगड़ कर मुझे भर्ती करवाया। फ़िर अपने भाई यानि मेरे साले को फोन लगाकर सारी बातें बताई। मेरी साले की उम्र होगी तक़रीबन 20 साल, जो मेरी नजर में नितांत आवारा और निठल्ला था, यहाँ तक कि जिसे मेरे घर पर आने की परमीशन भी नहीं थी। ऐसे में वह अक्सर मेरी गैर हाज़री में ही मेरे घर पर आता जाता था। फ़िर मेरी पत्नी ने अपने देवर यानि मेरे छोटे भाई को फोन लगाकर उसे बुलाया जो मेरे साले की ही उम्र का और बेरोज़गार था। मैं उसे कहता था “काम का ना काज का दुश्मन अनाज का।” दोनों के दोनों घबराते हुए अस्पताल पहुंचे, दोनों की आंखो मे आंसू थे और दोनों कह रहे थे कि आप घबराना मत आपको हम कुछ भी नहीं होने देंगे।
एक तरफ़ डॉक्टर साहब थे जो कह रहे थे कि “हम सिर्फ़ 3-4 घन्टे ही ऑक्सीजन दे पायेंगे फ़िर आपको ही ऑक्सीजन के सिलेंडर की व्यवस्था करनी होगी।” मेरी पत्नी बोली डाक्टर साहब ये सब हम कहाँ से लाएंगे।
तभी मेरा निठल्ला भाई और आवारा साला बोले कि हम कहीं से भी ले आएंगे सिलेंडर आप बस इलाज़ ज़ारी रखो।
यह कह कर दोनों वहाँ से रवाना हो गए…
इतने सब के बाद मुझपर बेहोशी छाने लगी और जब होश आया तो पास रखे सिलेंडर से मुझे ऑक्सीजन चढ़ रही थी। मैंने पत्नी से पूछा ये कहाँ से आया, तो उसने कहा “तुम्हारा भाई और मेरा भाई दोनों कहीं से जुगाड़ लगाकर दो सिलेंडर लेकर आए हैं, एक चल रहा है और दूसरा भरने दिया हुआ है।
मन थोड़ा खीजा तो मैंने उसी खीज के साथ पूछा कि कहाँ से लेकर आए तो उसने भी मेरे मन के भाव भाँपते हुए खीजकर कहा “ज़रूरत के समय ले आए मेरे लिए यही बहुत है, कहाँ से और कैसे? यह तो वही जानें”
यह बात करते-करते अचानक मेरा ध्यान पत्नी की खाली कलाइयों पर गया, मैंने कहा तुम्हारे कंगन कहा गये? कितने साल से लड़ रही थी न कि कंगन दिलवाओ, कंगन दिलवाओ। अभी पिछ्ले महीने शादी की सालगिरह पर दिलवाये थे ( बोनस मिला था उस समय)। वह बोली अब आप चुपचाप सो जाइये कंगन यहीं हैं कहीं नहीं गए। मुझे उसने दवाइया दी और मैं आराम करने लगा और धीरे-धीरे मेरी नींद लग गई।
फ़िर जैसे ही नींद खुली क्या देखता हूँ कि मेरी पत्नी कई किलो वजनी सिलेंडर को उठा कर ले जा रही थी, यह वही औरत थी जो थोड़ा सा भी वज़नी सामान उठाना होता था मुझे आवाज़ देती थी आज पता नहीं कैसे कई किलो वजनी सिलेंडर तीसरी मंजिल से नीचे ले जा रही थी और नीचे से भरा हुआ सिलेंडर ऊपर ला रही थी। मुझे गुस्सा आया मेरे साले और मेरे भाई पर, पता नहीं दोनों कहाँ मर गए फ़िर सोचा कि आएंगे तब जमकर फटकारुंगा !
कुछ देर बाद पड़ोस के बैड पर एक सज्जन भर्ती थे उनसे बातें करने लगा मैंने कहा की अच्छा अस्पताल है नीचे सिलेंडर आसानी से मिल रहे हैं। उन्होने कहा क्या खाक अच्छा अस्पताल है, यहाँ से 40 किलोमीटर दूर बड़े शहर में 7-8 घन्टे लाइन मे लगने के बाद बड़ी मुश्किल से एकाध सिलेंडर हाथ आ पा रहा है। आज ही अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 17 मौतें हुई हैं। मैं सुनकर घबरा गया और सोचने लगा की शायद मेरा साला और भाई भी ऐसे ही सिलेंडर ला रहे होंगे!! सही कहूँ तो जीवन में पहली बार मेरे मन दोनों के प्रति सम्मान दोनो के प्रति सम्मान का भाव जागा था।
कुछ सोचता इससे पहले पत्नी बड़ा सा खाने का टिफ़िन लेकर आती दिखी और पास आकर बोली उठो खाना खा लो। उसने जैसे ही मुझे प्लेट में खाना दिया एक ग्रास खाते ही मैने कहा ये तो माँ ने बनाया है। उसने कहा हाँ, माँ ने ही बनाया है।
माँ कब आई गांव से?
उसने कहा कल रात को।
अरे! वो कैसे आ गई? अकेले तो वो कभी आई ही नहीं शहर?
पत्नी बोली बस से उतर कर ऑटो वाले को घर का पता जो एक पर्चे मे लिखा था वह दिखा कर घर पहुंच गई, बस!
मेरी माँ ने शायद बाबूजी के स्वर्गवास के बाद पहली बार ही अकेले सफ़र किया होगा। गाँव की ज़मीन माँ बेचने नहीं दे रही थी तो मेरा मेरी माँ से मन मुटाव चल रहा था कहती थी मेरे मरने के बात जैसा लगे वैसा, करना जीते जी तो नही बेचने दूंगी।
पत्नी बोली मुझे भी अभी मेरी मां ने बताया की आपकी माँ रात को आ गई थी, वो ही घर से खाना लेकर आई हैं, जो आपकी मां ने बनाया है।
मैंने कहा पर तुम्हारी मां को तो पैरों मे तकलीफ है उनसे तो चलते ही नहीं बनता है। मेरी सास भी मेरे ससुर के स्वर्गवास के बाद बहुत कम ही घर से निकलती है।
जिस पर पत्नी बोली आप यह सब बातें छोड़कर आराम से खाना खाइये और मैं भी ज़्यादा कुछ दिमाग लगाए बिना खाना खाने लगा।
कुछ देर बाद मेरे फटीचर दोस्त का फोन आया बोला हमारे लायक कोई काम हो तो बताना। मैंने मन में सोचा कि जो मुझसे 3 हज़ार रुपये उधार ले रखे हैं इसने वही वापस नहीं किए, काम क्या ख़ाक बताऊँ इसे। फ़िर भी मैंने कहा कि ठीक है, ज़रूरत जरुरत होगी तो बता दूँगा और मुंह बनाकर फोन काट दिया।
16 दिंनों तक मेरी पत्नी सिलेंडर ढोती रही मेरा भाई और साला लाईन मे लगकर-लगकर सिलेंडर लाते रहे फ़िर मेरी हालत में थोड़ा सुधार होना शुरू हुआ और 19वें दिन अस्पताल से मेरी छुट्टी हो गई।
मुझे ख़ुद पर गर्व था कि मैंने आख़िरकार कोरोना को हरा दिया था और मैं फूला नहीं समा रहा था।
घर पहुंच कर असली कहानी पता चली कि मेरे इलाज मे बहुत सारा रुपया लगा था। शहर के बड़े अस्पताल का बिल कई लाख था। कितना ये तो नहीं पता पर मेरी पत्नी के सारे जेवर जो उसने मुझ से लड़-लड़ कर बनवाये थे बिक चुके थे।
मेरे साले के गले की चेन बिक चुकी थी जो मेरी पत्नी ने मुझसे साले की जनेऊ कार्यक्रम के पश्चात 15 दिन रूठ कर ज़बरदस्ती दिलवाई थी।
मेरा भाई जिस बाइक को अपनी जान से ज़्यादा रखता था वो भी घर में दिखाई नहीं दे रही थी।
मेरी माँ जिस जमीन को जीते जी नहीं बेचना चाहती थी, मेरे स्वर्गीय बाबूजी की आख़िरी निशानी, वो भी मेरे इलाज में बिक चुकी थी।
मेरी पत्नी से लड़ाई होने पर मैं गुस्से में कहता था की जाओ अपनी माँ के घर चली जाओ वो मेरा ससुराल का घर भी गिरवी रखा जा चुका था।
मेरे उस नाशुक्रे दोस्त ने जिसने मुझसे 3 हज़ार रुपये लिए थे वो 30 हज़ार वापस करके गया था।
जिन लोगों को मैं किसी काम का नहीं समझता था वे मेरे जीवन को बचाने के लिए पूरे के पूरे बिक चुके थे।
एक मैं ही अकेला था जो रोये जा रहा था बाकी सब लोग तो खुश थे क्योकि मुझे लग रहा था सब कुछ चला गया और उन्हें लग रहा था की मुझे बचा कर उन्होने सब कुछ बचा लिया।
अब मुझे कोई भ्रम नहीं था कि मैंने कोरोना को हराया है क्योंकि कोरोना को तो असल में मेरे अपनों ने, मेरे परिवार ने हराया था।
सब कुछ बिकने के बाद भी मुझे लग रहा था की आज दुनिया मे मुझसे अमीर दूसरा कोई भी व्यक्ति नहीं है।
यह कहानी किसी एक व्यक्ति की नही है अपितु हर उस इंसान की है जिसने कोरोना को नज़दीक से देखा है। कुछ सुने-सुनाये अनुभव हैं और कुछ सोशल मीडिया पर पढ़ी-समझी बातें। हाँ यह भी है की ज्ञान देना आसान होता है और असल में उसे ख़ुद पर इस्तेमाल करना बहुत मुश्किल। पर इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि ज़िन्दगी क्षणभंगुर है, लोगों को अपनाने की कोशिश करें, ढूँढने को निकलेंगे तो निःसंदेह भर-भरकर बुराईयाँ सब में मिलेंगी और देखेंगे तो अच्छाईयाँ भी।
अब यह हम पर है कि हम अपनों की, अपने दोस्तों, रिश्तेदारों की कइयों अच्छाइयाँ नज़रअंदाज़ करके सिर्फ उनकी बुराइयाँ देखना चाहते हैं की अच्छाइयाँ।
हाँ मानता हूँ कहना आसान है, करना मुश्किल!
शायद बहुत मुश्किल!! किन्तु एक पुरज़ोर कोशिश तो की ही जा सकती है। आख़िर ज़िन्दगी का क्या भरोसा?
आज है, कल नहीं!
आपका दिन शुभ हो…!!!