(एक विस्तृत धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विवेचन)
दीपावली — भारतीय संस्कृति का सबसे प्रकाशमय और शुभ पर्व। यह सिर्फ रोशनी और खुशियों का त्यौहार नहीं, बल्कि समृद्धि, शुद्धता और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक भी है। इस दिन समस्त भारत में देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, क्योंकि वे धन, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं।
लेकिन एक प्रश्न प्रायः सभी के मन में आता है —
“जब देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं, तो फिर दीपावली के दिन उनकी पूजा गणेश जी के साथ क्यों की जाती है?”
यह प्रश्न केवल धर्मशास्त्र का नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और प्रतीकात्मकता से जुड़ा हुआ है। आइए इसे गहराई से समझते हैं।
लक्ष्मीजी का स्वरूप और महत्व
देवी लक्ष्मी केवल “धन की देवी” नहीं हैं। “लक्ष्मी” शब्द संस्कृत के “लक्ष्य” से बना है — अर्थात उद्देश्य।
इसलिए लक्ष्मी केवल भौतिक धन ही नहीं, बल्कि जीवन में सही दिशा, उद्देश्य और सफलता का प्रतीक हैं।
शास्त्रों में उन्हें अष्टलक्ष्मी के रूप में वर्णित किया गया है —
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आदि लक्ष्मी (सृजन की ऊर्जा)
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धन लक्ष्मी (भौतिक संपदा)
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धान्य लक्ष्मी (अन्न और पोषण)
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गज लक्ष्मी (शक्ति और ऐश्वर्य)
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संतान लक्ष्मी (वृद्धि और वंश)
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वीर लक्ष्मी (साहस और पराक्रम)
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विद्या लक्ष्मी (ज्ञान और बुद्धि)
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विजय लक्ष्मी (सफलता और विजय)
दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा का उद्देश्य केवल धन प्राप्ति नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि प्राप्त करना होता है।
गणेशजी का महत्व दीपावली में
भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं — अर्थात सभी कार्यों में आने वाले अवरोधों को दूर करने वाले देव।
भारत में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन से होती है। चाहे विवाह हो, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ या पर्व पूजन — हर जगह पहले गणेशजी की वंदना की जाती है।
इसका कारण यह है कि गणेशजी “आरंभ के देवता” हैं।
अगर किसी कार्य का आरंभ विघ्नरहित और मंगलमय हो, तभी उसका परिणाम भी सफल होता है।
इसलिए दीपावली की रात्रि, जो नववर्ष के आरंभ का भी प्रतीक है, उसमें लक्ष्मीजी की पूजा से पहले गणेशजी की पूजा आवश्यक मानी जाती है।
गणेश-लक्ष्मी एक साथ क्यों पूजे जाते हैं?
यह प्रश्न का मूल बिंदु यही है — जब लक्ष्मीजी के पति भगवान विष्णु हैं, तो फिर दीपावली पर गणेशजी के साथ पूजा क्यों?
इसके कई धार्मिक और तात्त्विक कारण हैं
1. प्रतीकात्मक कारण — बुद्धि और धन का मेल
गणेश जी बुद्धि, विवेक और ज्ञान के प्रतीक हैं।
लक्ष्मी जी धन और समृद्धि की प्रतीक हैं।
यदि धन के साथ बुद्धि न हो, तो धन नष्ट हो जाता है।
और केवल बुद्धि बिना साधन के अधूरी है।
इसलिए दोनों की संयुक्त पूजा का अर्थ है —
“ऐसी समृद्धि की प्राप्ति जो विवेकपूर्ण हो।”
यह संयोजन सिखाता है कि धन वहीं टिकता है, जहाँ बुद्धि और संयम रहता है।
2. पुराणों के अनुसार — लक्ष्मी का स्नेह पुत्र समान
कुछ पुराणों और लोककथाओं में वर्णित है कि जब देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से विवाह किया, तो उन्हें कभी संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ।
एक दिन उन्होंने पार्वती जी से निवेदन किया कि वे गणेशजी को अपना पुत्र समान स्वीकार करें।
पार्वती जी ने स्नेहपूर्वक अनुमति दी।
तब से गणेशजी को लक्ष्मीजी का दत्तक पुत्र माना गया।
इसलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी और उनके पुत्र गणेश की पूजा साथ-साथ की जाती है — जैसे एक माँ और पुत्र की संयुक्त आराधना।
3. धन से पहले विघ्न का निवारण आवश्यक है
धन और समृद्धि तभी स्थिर रहती है जब जीवन में विघ्न न हों।
इसलिए पहले गणेशजी की पूजा करके, हम अपने जीवन और व्यवसाय से सभी अवरोधों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
फिर लक्ष्मीजी की आराधना करके स्थायी समृद्धि की कामना करते हैं।
यह शास्त्रीय क्रम “गणेश पूजन → लक्ष्मी पूजन” कहलाता है।
4. वैदिक दृष्टि से — विष्णुजी तो अनादि नित्य हैं
भगवान विष्णु का लक्ष्मीजी से संबंध नित्य और शाश्वत है।
उनकी पूजा का उद्देश्य मोक्ष और धर्म पालन है, जबकि दीपावली पर हम भौतिक समृद्धि और गृहस्थ सुख की कामना करते हैं।
इसलिए उस संदर्भ में गणेशजी अधिक समीचीन देव माने गए — क्योंकि वे गृहस्थ जीवन के आरंभकर्ता देवता हैं।
दार्शनिक दृष्टिकोण से — लक्ष्मी स्थायी क्यों नहीं रहती?
शास्त्रों में कहा गया है —
“चंचला लक्ष्मी” — अर्थात लक्ष्मी चंचल हैं, वे स्थिर नहीं रहतीं।
परंतु जहाँ गणेशजी का आशीर्वाद होता है, वहाँ लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं।
इसका अर्थ यह है कि यदि व्यक्ति के भीतर संयम, बुद्धि, और सदाचार है, तो धन भी स्थिर रहता है।
इसीलिए लक्ष्मीजी को स्थायी करने के लिए पहले गणेशजी की आराधना की जाती है।
गणेश-लक्ष्मी के साथ सरस्वती की भी आराधना
कुछ परंपराओं में दीपावली की रात्रि त्रिदेवी-त्रिदेव पूजा का दिन भी होती है —
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गणेश — बुद्धि
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लक्ष्मी — धन
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सरस्वती — ज्ञान
ये तीनों मिलकर एक पूर्ण जीवन का प्रतीक हैं —
“बुद्धि से धन अर्जित करो, ज्ञान से उसे संवारो, और सदाचार से उसका सदुपयोग करो।”
शास्त्रीय ग्रंथों में उल्लेख
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पद्म पुराण में वर्णित है कि भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को आदेश दिया कि वे कार्तिक अमावस्या के दिन पृथ्वी पर जाकर अपने भक्तों को धन से सम्पन्न करें।
परंतु जो भक्त विघ्नहर्ता गणेश की पूजा किए बिना केवल धन की कामना करेंगे, वहाँ लक्ष्मी स्थिर नहीं रहेंगी। -
लक्ष्मी तंत्र में कहा गया है —
“गणेश पूज्यते यत्र, तत्र लक्ष्मी निवसति।”
अर्थात जहाँ गणेशजी की पूजा होती है, वहीं लक्ष्मी निवास करती हैं।
आधुनिक दृष्टि से प्रतीकात्मक अर्थ
दीपावली केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक मानसिक रीसेट भी है।
हम अपने घरों की सफाई करते हैं, रोशनी जलाते हैं, और अपने मन से अंधकार को मिटाते हैं।
गणेशजी हमारे भीतर के अवरोधों और अहंकार को दूर करते हैं,
जबकि लक्ष्मीजी सद्गुणों और समृद्धि को आमंत्रित करती हैं।
दोनों की पूजा का अर्थ है —
“पहले मन को शुद्ध करो, फिर जीवन में समृद्धि का स्वागत करो।”
निष्कर्ष
दीपावली पर लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की पूजा कोई संयोग नहीं, बल्कि अत्यंत गूढ़ परंपरा है।
यह हमें सिखाती है कि —
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धन से पहले बुद्धि,
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समृद्धि से पहले सदाचार,
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और पूजा से पहले श्रद्धा आवश्यक है।
भगवान विष्णु लक्ष्मीजी के नित्य पति हैं — वे परमधर्म और मोक्षमार्ग के प्रतीक हैं,
जबकि गणेशजी लक्ष्मीजी के सहपूज्य देवता हैं — जो गृहस्थ जीवन के मंगल और स्थिरता के प्रतीक हैं।
इसलिए दीपावली की रात्रि में जब दीप जलाएं, तो याद रखें —
“गणेश का विवेक और लक्ष्मी की कृपा — यही सच्ची दीपावली है।”
॥ शुभ दीपावली ॥
“ज्ञान में गणेश, हृदय में लक्ष्मी और जीवन में प्रकाश बना रहे।”