वन्दे भारत ट्रेन जब चली थी तो बहुत किस्से हुआ करते थे, अब भी हो रहे हों शायद लेकिन शुरूआती दौर में बहुत ज्यादा किस्से हुए। ये हाई स्पीड ट्रेन है चलने के पहले ही इसके दरवाजे लॉक हो जाते हैं फिर ट्रेन का मूवमेंट शुरू होता है। हम लोगों की आदत है कि पैसेंजर को ट्रेन में बिठा कर उसके साथ तब तक बैठे रहते हैं जब तक ट्रेन चल न दे। अब वन्दे भारत में भी यही हुआ नई नई हाई स्पीड ट्रेन में लोग अपने सगे सम्बन्धियों को छोड़ने जाते और ट्रेन जब चल पड़ती तब उतरने की कोशिश करते। लेकिन होता क्या था कि दरवाजे लॉक और ट्रेन की स्पीड भक्क से सौ। और अगला स्टॉपेज कानपुर। दिल्ली से ४५० किलोमीटर आगे। अब लोग रोने पीटने लगते लेकिन कोई कुछ न कर सकता था। पेनल्टी और जेल और फिर ८-१० घंटे का सफर कर वापस जाना। इसलिए ही उस ट्रेन पंद्रह मिनट पहले से ही अनाउंसमेंट शुरू हो जाता है कि बाबू भइया उतर जाओ, ट्रेन चल पड़ी तो उतर न पाओगे फिर सीधे कानपुर जेल।
कल से जो इंजन बदलने का राग अलापे पड़े हो तो भइये इंजन बदल दिए ना तो धुआँ फेंक दोगे, न रो पाओगे न सो पाओगे। नाम सुने हो ना “महाराज जी” का। लार पोंटा सब फेंक दोगे। बहुत वेराइटी के इंजन हैं इधर। शताब्दी वाले दढ़ियल से काम चला लो। अगले वाले को झेल पाने की कुबत नहीं है तुम लोगों के अंदर।