ओ… ओ… आ आ…
ओ कान्हा ओ कृष्णा
जाने मुझको ये क्या हो गया
कुछ भी मैं जानू ना
मोह में क्यूं ये मन खो गया
कह भी ना, पाऊं मैं
सब तुम्हारी ही माया लगे
क्या है ये, तुम जानो
पर ये अनुभव सुखद सा लगे
कान्हा ओ कृष्णा
जाने मुझको ये क्या हो गया
कुछ भी मैं जानू ना
मोह में क्यूं ये मन खो गया
अंतर मन कहता हे
तुमसे कुछ भी नहीं हे छुपा
जिस क्षण तुम पास रहो
सारा संसार पीरा लगे
जब तुम से दूर रहु
मन में कोई कमी सी रहे
ना ही स्वयं जानू ना
हो गयी हे ये किसी दशा
ओ कान्हा ओ कृष्णा
जाने मुझको ये क्या हो गया
कुछ भी मैं जानू ना
मोह में क्यूं ये मन खो गया
ओ कान्हा ओ कृष्णा
खो गए तुम न जाने कहां
निर्मोही ओ कान्हा
मैं अधूरी हूं तुम बिन यहां
बैरी तुम, क्या जानो
ये विरह की अगन कैसी है
कैसे मैं समझाऊं
हर घड़ी एक युग जैसी है
भूले क्यों सुध मेरी
ये बता दें मैं जाऊं कहां
कान्हा ओ कान्हा
ढूंढे तुझे तेरी राधा
निर्मोही, ओ बैरी
ये बता दें मैं जाऊं कहां