जीने की सही दृष्टि

*जीने की सही दृष्टि*

जीवन जीना एक कला है। हम चाहें तो बहुत सुंदर जीवन जिया जा सकता है वर्ना यही जीवन हमें बोझ लगने लगता है।

ऐसे में प्रश्न जीवन जीने की सही दृष्टि प्राप्त करने का है, क्योंकि जब तक यह दृष्टि हमें प्राप्त नहीं होती तब तक हमें जीने की राह नहीं मिल सकती।

मनुष्य को सबसे पहले स्वयं से यह प्रश्न करना चाहिए कि वह इस धरती पर क्यों आया? आप यहां शिकायत करने, दुखड़े रोने के लिए आये हैं या फिर आनंद लेने के लिए आये हैं?

इस प्रश्न का आपको जैसा उत्तर मिलगा, जीवन में आपकी वैसी दृष्टि हो जायेगी।

पांडवों और कौरवों को शस्त्र देते हुए आचार्य द्रोण के मन में उनकी वैचारिक और व्यावहारिकता की परीक्षा लेने की बात सूझी।

उन्होंने दुर्योधन को अपने पास बुलाया और कहा, “वत्स! तुम समाज में से एक अच्छे आदमी की परख करके उसे मेरे सामने उपस्थित करो।”

कुछ दिनों बाद दुर्योधन वापस आचार्य के पास आया और कहने लगा, “मैंने कई नगरों, गांवों का भ्रमण किया, लेकिन मुझे कहीं कोई अच्छा आदमी नहीं मिला।”

फिर आचार्य ने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा, “वत्स ! इस पृथ्वी पर से कोई बुरा आदमी तलाश कर ला दो।”

काफी दिनों के बाद युधिष्ठिर आचार्य के पास आये।

आचार्य ने पूछा, “क्या किसी बुरे आदमी को साथ लाये हो?”

युधिष्ठिर ने कहा, “गुरु जी मुझे कोई बुरा आदमी मिला ही नहीं।”

सभी शिष्यों ने आचार्य से पूछा, गुरुवर ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर को बुरा आदमी नहीं मिला।

आचार्य बोले, “जो व्यक्ति जैसा होता है उसे सारे लोग अपने जैसे दिखाई पड़ते हैं। इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी न मिल सका।”

असल में, दो ही प्रकार के मनुष्य होते हैं। एक वे जिनकी दृष्टि बहुत संकुचित होती है, जबकि दूसरे वे जिनकी दृष्टि उदार होती है।

संकुचित दृष्टि वाले बहुत थोड़ा देख पाते हैं, जबकि उदार दृष्टि वाले वस्तु या व्यक्ति का समग्रता से निरीक्षण करते हैं।

यही वजह है कि दृष्टिहीन धृतराष्ट्र का पूरा जीवन अपने परिवार के माया-मोह में सिमट गया, दूसरी तरफ सूरदास ने दृष्टिहीन होने के बावजूद अपने जीवन को आदर्श बनाया।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि जहां विस्तार है, वहां जीवन है। जहां मतभेद है वहीं मृत्यु भी है। सभी प्रकार के प्रेम विस्तार को और सभी तरह के स्वार्थ मतभेदों को जन्म देते हैं। इस प्रकार प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है।

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